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08 Oct, 2022 by Ardh Sainik News

SC/ST आरक्षण बढ़ाने का फैसला, 50% कोटे की सीमा समाप्त करने की तैयारी में कर्नाटक

कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले बड़ा कदम उठाया है। राज्य सरकार ने संवैधानिक संशोधन के जरिए राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) का आरक्षण बढ़ाने का फैसला किया है। सरकार ने यह निर्णय जस्टिस एच. एन. नागमोहन दास आयोग की रिपोर्ट के आधार पर लिया है, जिसने एससी आरक्षण को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी के लिए इसे 3% से बढ़ाकर 7% करने की सिफारिश की है।

मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने एक सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता करने के बाद इसकी घोषणा की। बैठक में कांग्रेस और जनता दल (एस) के नेताओं ने भी भाग लिया। उन्होंने कहा कि एससी/एसटी समुदायों को आबादी के आधार पर आरक्षण की लंबे समय से मांग होती रही है। उन्होंने कहा, 'जस्टिस नागमोहन दास आयोग की सिफारिशों पर आज सर्वदलीय बैठक में चर्चा की गई और इसे अनुमति दे दी गई। इससे पहले हमारी पार्टी (भाजपा) के भीतर इस पर चर्चा हुई, जहां एससी/एसटी के कल्याण के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखने का फैसला लिया गया। शनिवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई जाएगी, जहां इस संबंध में औपचारिक निर्णय लिया जाएगा।'

SC/ST सांसदों का सरकार पर था दबाव 

बोम्मई सरकार पर आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एससी/एसटी सांसदों का जबरदस्त दबाव था। साथ ही, वाल्मीकि गुरुपीठ के आचार्य प्रसन्नानंद स्वामी भी एसटी आरक्षण सीमा को बढ़ाने ने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस राज्य सरकार पर कदम उठाने में देरी को लेकर हमलावर रही है। आयोग ने जुलाई 2020 में सरकार को अपनी सिफारिशें दी थीं। हालांकि, आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों के बाद, राज्य सरकार ने कानून और संविधान के अनुसार सिफारिशों को लागू करने के लिए जस्टिस सुभाष बी. आदि की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था, जिसने बाद में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी।

बोम्मई ने कहा कि दोनों रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद, सरकार कानून और संविधान से संबंधित किसी भी मामले पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहती थी, इसलिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। वर्तमान में, कर्नाटक OBC के लिए 32 प्रतिशत, SC के लिए 15 प्रतिशत और ST के लिए तीन प्रतिशत यानि कि कुल 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है। अब नौंवी अनुसूची के माध्यम ही एससी/ एसीटी कोटा बढ़ाने का एकमात्र जरिया हो सकता है।

50% आरक्षण की सीमा कई राज्यों में हुई पार

सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) नेता एचडी कुमारस्वामी भी शामिल हुए। यह देखते हुए कि अगर आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक होता है तो अदालतें आपत्ति जताएंगी। कानून मंत्री जे सी मधुस्वामी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि राज्यों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन कुछ राज्यों ने इस सीमा को भी पार कर लिया है। विशेष परिस्थितियों में ऐसा करने का प्रावधान मौजूद है। उन्होंने कहा, 'हम इसे 9वीं अनुसूची के तहत पेश करेंगे, क्योंकि इसमें न्यायिक छूट है। तमिलनाडु ने नौंवी अनुसूची के तहत ही आरक्षण की ऊपरी सीमा को 69 प्रतिशत कर दिया। हम संविधान में संशोधन के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करेंगे।'

मंत्री ने स्वीकार किया कि एससी/एसटी कोटा बढ़ाने और 50 प्रतिशत से अधिक करने से कुछ हद तक सामान्य वर्ग की जगह खत्म हो जाएगी। इस फैसले को कुछ लोग राजनीतिक चश्मे से भी देख रहे हैं क्योंकि करीब 6 महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। सिद्धारमैया ने केंद्र से अपील की है कि अगर वह वास्तव में इन समुदायों की परवाह करता है, तो राज्य की सिफारिश के बाद एससी/ एसटी के लिए कोटा वृद्धि को प्रभावी करने के लिए एक अध्यादेश जारी करे।

'किसी के लिए आरक्षण की मात्रा नहीं होगी कम'

बोम्मई ने कहा कि एससी/एसटी कोटा बढ़ाने के फैसले से किसी भी समुदाय के लिए आरक्षण की मात्रा कम नहीं होगी। राज्य में विभिन्न समुदायों के लिए कुल 50 प्रतिशत आरक्षण है। आज लिया गया निर्णय उस 50 प्रतिशत सीमा से ऊपर है, जिसकी सिफारिश जस्टिस नागमोहन दास समिति ने की है। उन्होंने कहा, 'आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय पहले ही किया जा चुका है, जिन्हें कानून के अनुसार आरक्षण नहीं है, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और फैसले का इंतजार है।'